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Key Learnings:Basics of Stock MarketFinancial Market
हम इन्फ्लेशन (मुद्रास्फीति) टर्म को देखते आये हैं और हम जानते हैं कि समय के साथ किसी भी एसेट की वैल्यू को नष्ट करने की पॉवर कैसी होती है׀
हम इन्फ्लेशन (मुद्रास्फीति) टर्म को देखते आये हैं और हम जानते हैं कि समय के साथ किसी भी एसेट की वैल्यू को नष्ट करने की पॉवर कैसी होती है׀
जैसा कि हम जानते हैं, कि इन्फ्लेशन समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में सामान्य बढ़ोतरी है׀ यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं की खरीदी की क्षमता को प्रभावित करता है׀
इसीलिए निवेश के क्षेत्र में, किसी एक निवेश के रिटर्न की गणना करते समय इन्फ्लेशन को ध्यान में रखना आवश्यक है׀
तो, हम अपने निवेश में इन्फ्लेशन को कैसे एडजस्ट करें?
यह मूल रूप से इंडेक्सेशन नाम की एक प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है। बेसिक टर्म में इंडेक्सेशन कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स को एडजस्ट करने के बाद किसी भी एसेट की पर्चेस प्राइस को एडजस्ट करने या पुनर्गणना करने को दर्शाता है। यह कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स इनकम टैक्स अथॉरिटी द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
इन्फ्लेशन इंडेक्स के साथ किसी भी एसेट के पर्चेस प्राइस को एडजस्ट करने से प्राइस रिएडजस्ट या ब्लोटेड हो जाता है (जिसका अर्थ है कि यह करंट प्राइस लेवल पर माना जाता है)। आइए एक उदाहरण देखें:
मान लीजिए कि हमने 2005 में 2 लाख में एक एसेट ख़रीदा है और 2018 में 7 लाख में वही एसेट बेचा। फिर, हमें भारत के इनकम टैक्स द्वारा प्रकाशित कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स का उल्लेख करना होगा।
हम वर्ष 2005 के CII को निकालेंगे जब एसेट ख़रीदा गया था (CII = 113) और वह वर्ष जब एसेट बेचा गया था अर्थात 2018 में (CII = 272)। फिर जब हम 2018 के CII को 2005 के CII द्वारा विभाजित करेंगे, तो हमें 2.40 मिलेगा।
यह वैल्यू को फिर पर्चेस प्राइस (2 लाख * 2.40) से गुणा किया जाता है ताकि एसेट की इंडेक्स्ड पर्चेस प्राइस (4.81 लाख) पर पहुंच सके। इसे मूल रूप से एसेट का इंडेक्स्ड पर्चेस प्राइस कहा जाता है।
अब, इस प्राइस की गणना करने का क्या लाभ है?
यदि आपने नोटिस किया होगा, कि वास्तव में पर्चेस प्राइस एक्चुअल प्राइस से बढ़ गया है। 2005 में, एक्चुअल प्राइस 2 लाख था, लेकिन इंडेक्सेशन पर यह 4.81 लाख है।
कैपिटल गेन टैक्स की गणना करने पर, यह इंडेक्स्ड प्राइस कम लॉन्ग-टर्म गेन दिखाएगा और इसलिए, किसी को अपने निवेश रिटर्न पर कम LTCG (लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन) का भुगतान करना होगा।
मान लीजिए, हम बिक्री से सिर्फ कॉस्ट प्राइस (7 लाख – 2 लाख) को घटाते हैं, तो हमें 5 लाख का कैपिटल गेन मिलेगा। लेकिन इन्फ्लेशन के कारक के कारण यह कैपिटल गेन की गणना करने का सही उपाय नहीं है। इसलिए, एक बार जब हमने इंडेक्सेशन लाभ लिया है, तो हमारा कैपिटल गेन (7 लाख – 4.81 लाख = 2.18 लाख) पर पहुंच जाएगा।
कम कैपिटल गेन टैक्सेबल आय को कम करेगा और साथ ही हमें एक निवेशक के रूप में हायर पोस्ट टैक्स रिटर्न अर्जित करने में मदद करेगा।
अब, एक बात हमें यह भी ध्यान में रखनी चाहिए कि इक्विटी फंड भारत में इंडेक्सेशन लाभ प्रदान नहीं करते हैं। इंडेक्सेशन बेनिफिट केवल डेब्ट म्यूचुअल फंड्स में ही मिल सकते हैं। यह इंडेक्सेशन लाभ डेब्ट फंड को पोस्ट-टैक्स रिटर्न के मामले में बैंक डिपॉजिट जैसे किसी भी फिक्स्ड इनकम निवेश पर बढ़त मिलती है।
इसलिए, डेब्ट फंड में इंडेक्सेशन लाभ किसी भी रिटेल मार्ट स्टोर में एक एक्सक्लूसिव सेल की तरह होता है, जहां आपको पता होता है कि आपसे किसी अन्य स्थान पर उपलब्ध उस ही समान चीज़ के लिए कम शुल्क लिया जाएगा।
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